शनिवार, 11 अक्तूबर 2008

डरपोक

डरपोक
लीना मेहेंदळे, भा.प्र.से.

वह जंगल में रहता था |

जंगल के सारे नियम ही अलग थे | किसी पर कोई दबाव नही | जहाँ चाहो, घूमो, जब चाहो, घर लौटो | जंगल कितना बडा था, फिर भी रास्तों की पहचान कितनी सरल थी| और कभी रास्ते से दूर निकल जाओ तो भी कोई बात नही| कोई जल्दी नही थी ठिकाने पर लौटने की| घर से दूर रहने के खतरे बहुत नही थे | कम से कम उसके लिये तो नही | वह शक्तिमान जो था |

लेकिन शहर के नियम अलग थे | उसने सुन रख्खा था कि शहर के लोगों ने शहर को बहुत कठिन बना दिया था| एक जगह से दूसरी जगह निकल जाओ तो पता ही न चले कि वापस कैसे लौटना है| जंगल ने उसे बहुत कुछ सिखाया था | उसमे से बिलकुल आरंभिक सीख थी कि रास्ते को वापस कैसे ढूँढा जाता है | लेकिन जिन्हें शहर के नियमों का थोडा बहुत पता था वे बताते थे कि शहरी मनुष्य ने अपने रास्ते इतने उलझन वाले बनाये थे कि जंगल की कोई सीख वहाँ काम नही आ सकती थी | बेहतर यही था कि जो जंगल में बस गया है वह शहर जाये ही नही |

इस जंगल में उसकी पाँच पीढियाँ रह चुकी थीं | उसके दादा के दादा ने भी शहरों की बाबत यही सुना होगा ! और तय किया होगा कि वे कभी शहरों की ओर नही जायेंगे| फिर उसके परदादा ने, दादा ने और बाप ने भी वही तय रखा होगा | पीढी पर पीढी यही सीख चली आ रही थी कि शहरों से बचो | जंगल ही तुम्हारा घर है |

इस जंगल से ही उसकी सारी जरूरतें पूरी हो जातीं | आखिर जंगल में रहनेवाले की जरूरतें होंगी भी कितनी ? न उसे शॉपिंग मॉल चाहिये, न पब, न इंटरनेट ! न बियर बार, न बार डान्सर्स | न कारें और न मोबाईल और न पिक्चर्स | खाना और पानी - बस | सबसे जरूरी यही तो है| और हाँ, सर पर एक छप्पर भी चाहिये। वह भी जंगल में आराम से बन जाता है।

लेकिन एक दिक्कत थी - जो शहरी आदमी के लालच के कारण आई थी | आजकल शहर अनाप - शनाप वेग से बढ रहे थे | उन्हें चाहिये थीं नई नई इमारतें, नये रास्ते, नये शॉपिंग मॉल्स, पार्किंग प्लेस, हॉटेल्स ! फिर हर बार जमीन के लिये निगाह टिकती थी बाग - बगीचों, खेल के मैदानों और जंगलों पर | शहर में कभी कभी जाने वाले बताते थे कि कैसे शहर के अंदर भी, पेड कट रहे थे | बगीचे सफाचट हो रहे थे | शहर वाले वहाँ डेरा जमा देते थे। और उसी सीनाजोरी से जंगलके हिस्सों पर भी आकर डेरा डाल देते थे | जंगलो के हक की बात कौन उठाता ? पहले कभी शहर जाओ तो उंचे - बडे पेड वहाँ भी होते थे - बगीचे भी होते थे। देखकर दिल को तसल्ली मिलती कि कुछ तो जाना पहचाना - जंगल जैसा दिखनेवाला है | लेकिन आजकल वहाँ हो आने वाले कहते हैं कि अब तो शहरों में पेड या बगीचे भी नही रहे कि कभी भूले भटके शहर में पहुँच भी जाओ तो वहाँ बैठकर सुस्ता सको |

उधर शहर के लोग जंगलों में धडल्ले से घुस सकते हैं, आने जाने के लिये पक्की सडकें, टूरिस्ट होम्स, टूरिझम सेंटर्स, जंगल सफारी इत्यादि का आयोजन कर सकते हैं| जंगल निवासियों के अलावा वन्य पशु प्राणियों की जन्मस्थलियों को भी प्रदूषित और असुरक्षित बना सकते हैं | उन्हें रोकने वाला कौन है? सारे कानून उनके हाथ में और कानून बनाने वाले भी |
शक्तिमान को इन बातों की अधिक समझ नही थी और न चिन्ता| केवल जंगलवासियों की बातें कान पर पडतीं| वह ऐसी बातचीत में कभी शरीक भी नही होता था, और न ये बातें उसके दिमाग में देर तक टिकतीं | थोडी देर सुन लिया - बातें करनेवालों के चेहरे की परेशानी - देखकर कुछ अंदाज लगाया, कभी चिंतित भी हुआ - लेकिन सारा कुछ बस थोडी देर का किस्सा | ऐसी बातों में क्या सिर खपाना ? उसे तो कभी जंगल छोडकर शहर जाने की चाह नही है | खाना - पानी तो जंगल उसे दे ही देता है | घूमने के लिये उसका जंगल अब भी काफी विस्तृत है | और उसके पास है शक्ति | इसीलिये उसे न कोई डर था और न कोई चिंता |
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लेकिन इधर कुछ समय से शक्तिमान विचलित हो उठा था | अपने चार - पाँच भाई - भतीजों के दुर्दिन के किस्से सुनने में आये थे | जब पहली बार ऐसा किस्सा सुना तभी से वह अकुला गया था |
उसका दूर के रिश्ते का भाई था जो जंगल का रास्ता भटक कर शहर में पहुँच गया था| उसका भी क्या दोष? जंगल की एक जगह जो कभी उसके घूमने और खाना ढूँढने की जगह हुआ करती थी - एक बार कुछ महीनों बाद वहाँ लौटा तो वह अजनबी हो चुकी थी | वहाँ घर बन गये थे, घुमावदार रास्ते थे, पेड कहीं नही थे | हाँ - कुछ लॉन और बगीचे जैसा बना हुआ था| भाई वहाँ पहुँच तो गया लेकिन वहाँ से वापस कैसे आये, समझ नही पाया | लोगों की आँखो से बचने के लिये एक टूटी खिडकी के रास्ते से एक कमरे में घुस गया| और यही उसकी चूक थी |

भाई की मौत का विवरण शक्तिमान ने टुकडों टुकडों में सुना था | कुछ इसके मुँह से तो कुछ उसके| हर बार उसका दिल दहल जाता - शहरी मनुष्य की क्रूरता को सुनकर | और कई घंटों तक वह सोचता रहता कि भाई ने कैसे झेला होगा उस क्रूरता को| कितना डरा होगा| कितना चीखा होगा| कितना भागा होगा | क्यों ? केवल इसलिये कि शहर से वापस जंगल आने का रास्ता खोजना उसके बस के बाहर की बात थी |

शक्तिमान ने जो सुना उससे इतना तो निश्चित था कि यदि भाई रास्ता पहचान पाता तो वापस आ जाता| खिडकी के रास्ते जिस कमरे में वह घुसा, वहाँ उसे बार बार खटका हो रहा था| कमरे के बाहर उसे कुछ शोर गुल सुनाई पडा, और कुछ भागते पैरों की आवाज | लोग उसी कमरे के पास दौड लगा रहे थे - मानों उन्हें भी पता हो कि कमरे में कोई अजनबी घुसा आया है | भाई ने कोशिश की ताकि दुबारा छलाँग लगाकर खिडकी तक पहुँचे और वहीं से बाहर निकल जाये| इस कोशिश में वह कई बार गिरा| हर बार उसके गिरने पर आवाज होती और बाहर शोरगुल बढ जाता | किसी तरह वह खिडकी से बाहर निकल पाया | और दौड लिया एक रास्ते पर |

भाई भागने में बडा तेज था| किसी तरह भाग कर, लोगों के एक झुण्ड को वह पीछे छोडता, तो दूसरी तरफ से दूसरा झुण्ड उसका रास्ता रोक लेता| वह दाँत भींच कर दौडने के लिये अपनी शक्ति लगाता और लोग सोचते कि यह किसी पर चढ बैठेगा | लोग थोडा सा पीछे भी हट जाते | लेकिन आखिर वह निहथ्था था और लोग लाठीधारी| उसे घेर कर कितनी ही बार लाठियाँ बरसाने का प्रयास हुआ | उस पर पत्थर और लाठियाँ भी फेंकी गई | भाई भागता रहा, चीखता रहा, दर्द में तडपता रहा और डरता रहा| आखिर चार घंटे के बाद वह पूरी तरह से पस्त चुका था | अब उसमें एक पैर उठाने की शक्ति भी नही थी| उसे स्पष्ट दिख रहा था कि अब ये सारे आदमी उसे पकड लेंगे| ठीक है, पकडने दो| यदि उन्होंने पकडने के बाद उसे कैद कर लिया या जंगल का रास्ता दिखा दिया तो क्या बुरा है | वह दुबारा कभी इस ओर रूख नही करेगा |
लेकिन नही| इतने सारे आदमी जो जमा हुए थे और उसपर लाठियाँ बरसाने के लिये उतावले हो रहे थे - उनमें कहीं से एक बन्दूकधारी आ गया | उसने बन्दूक दाग दी| तीन गोलियाँ चलीं और भाई की जाँघ, पैर और छाती में धँस गई | भाई ने कुछ देर में ही दम तोड दिया |
दूसरे रिश्तेदारों के किस्से भी इसीसे मिलते जुलते थे | शक्तिमान देख रहा था कि उसके पास भी कोई चारा नही था | जितना जंगल उसके बचपन में था, आज दस वर्षोंमे वह कितना कम हो चुका था | वह किससे फरियाद करे? किसे ले जाकर दे अपनी ऍप्लीकेशन? किससे कहे कि भटक जाने की हालत में हम जंगलवासियोंको वापस जंगल में पहुँचा दो ! उसके जितने रिश्तेदार मारे गए, सभी की कहानी एक जैसी थी | जंगल छोटा हो जाने के कारण भटक कर शहर में घुस जाना, वापसी का रास्ता ढूँढ पाने का कोई सवाल ही नही | शहर वासियों के पास कोई सुनवाई भी नही| और शहर में छिपने लायक कोई जगह भी नही | शहरी मनुष्यों से दोस्ती करने जैसी भी कोई बात नही थी | वे कभी किसी जंगलवासी को अपने समाज जीवन में जगह नही देंगे| जंगलवासी उनकी तरह स्मार्ट और बंदूकधारी जो नही है |
यह क्या न्याय है कि शहरवासी तो जब चाहे जंगल में आ सकता है लेकिन जंगलवासी शक्तिमान यदि वहाँ चला गया तो उसे मार दिया जायगा ? क्या कोई ऐसा कानून नही बन सकता कि जंगलों को न काटा जाय - उन्हें पनपने दिया जाय और उसके आश्रय में रहनेवाले शक्तिमान जैसे सभी को शांतिपूर्वक रहने दिया जाय ? इस सारे प्रश्नों का अंत नही था |
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जंगल में पानी के दो स्तोत्र थे | एक तो था हरियाला तालाब और दूसरा झरनेसे बना कुण्ड| पिछले कई महीनों से शक्तिमान कुण्ड के इलाके में रह रहा था | शक्तिमान की माँ बताती थी कि कुण्ड वाला झरना पहले बारहों महीने बहता था | लेकिन इधर कुछ वर्षों से जंगल में एक बडा पहाड काटा गया था| उसकी झाडी की लकडियाँ ट्रकों पर लद कर चली गईं तो शक्तिमान और उस जैसे जंगलवासी बिना कुछ समझे देखते रह गये थे| फिर ट्रक भर भर के मिट्टी और पत्थर जाने लगे| झरने की धार पतली होने लगी| यही हाल रहा तो अगले दस-बीस वर्षों में झरना और कुण्ड दोनों का नामनिशाना भी बाकी नही रहेगा | शक्तिमान ने तय किया कि उसे वापस हरियाले तालाब के क्षेत्र में जाकर अधिकतर वहीं रहना चाहिये ताकि पानी की दिक्कत न हो |

लेकिन हरियाले तालाब के पास आकर शक्तिमान चकरा गया| तालाब के किनारे के पेड काट दिये गये थे| अब वहाँ चारों ओर एक उंची दीवाल उठ गई थी| शक्तिमान ने घूम घूम कर देखा, कुल पांच जगहों पर छोटे-बडे दरवाजे बने हुए थे| लोहे के दरवाजे - जिनके ऊपरी छोर भाले की तरह नुकीले थे ताकि कोई उनपर चढ कर परली तरफ न उतर सके। लो, यदि शहरवासियों ने जंगल का तालाब ही घेर लिया तो जंगलवासी पानी कहाँ से पियेगा ?
घूम फिर कर शक्तिमान ने एक जगह ढूँढ ली जहाँ दीवार से थोडा सटकर अर्जुन का उँचा, घना पेड था | यदि वह पेड पर चढकर थोडी सी हिम्मत करे तो दीवार पर कूद सकता था | फिर दीवार से नीचे कूद कर तालाब का पानी पी सकता था |
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व्ही.सी. को सूचना मिली "तालाब पर आ जायें सर ! आपकी योजना सफल हुई हैं|" व्ही.सी. शान से चलने को तैयार हुए | उनकी युनिवर्सिटी करीब दो सौ एकर क्षेत्र में बसाई गई थी, लेकिन उस क्षेत्र के तीन छोटे तालाब उन्हें पर्याप्त नही लगते थे | उनकी सीमा से जंगल क्षेत्र की सीमा जहाँ जुडती थी - उसके आधे किलोमीटर पर हरियाला तालाब था | वह क्षेत्र यदि युनिवर्सिटी को मिल जाय तो हरियाले तालाब का पानी कितना काम आ सकेगा | सारे तर्कों सहित और युनिव्हर्सिटी में पढ रहे तीन हजार विद्यार्थियों का वास्ता देकर व्ही.सी. ने सरकार को राजी कर लिया था कि जंगल का वह हिस्सा भी सौ वर्ष के पट्टे पर युनिवर्सिटी को दिया जाय | जब उन्हें सफलता मिली तो बधाई देने वालों ने एक खतरे की घंटी भी बजा दी - सर, उस तालाब पर पानी पीने के लिये सारे जंगलवासी आते है - क्या आदिवासी, क्या जंगली भैसे और हाँ, कभी कभी बाघ भी |
बाघ का नाम सुनकर व्ही.सी. की बाँछे खिल गईं | किसी जमाने में उनके परदादा अच्छे शिकारी थे| पाँच बाघों का शिकार किया था उन्होंने | अब परपोता उस खानदानी गरिमा को आगे बढायेगा | वे खुद तो बन्दूक लेकर शिकार करने की मंशा नही रखते थे लेकिन उनका एक फिल्मी दोस्त था | उसके शौक को पूरा करके दोस्ती निभाने का समय आ गया था |
फिर व्ही. सी. के ही प्लान के मुताबिक हरियाले तालाब की चारों ओर दीवार बनी थी | उनका फिल्मी दोस्त भी आकर ठहर गया था| बाघ की शिकार के लिये उताविल था |
सूचना मिलते ही व्ही.सी. और उनका फिल्मी दोस्त निकल पडे | जीप में बैठकर तालाब तक आये | तब तक काफी भीड जमा हो चुकी थी | लाठियाँ लिये कई विद्यार्थी एक गेट के पास खडे थे | प्लान बना कि गेट को खोलकर सब अंदर जायें - शोर मचायें, बाघ को दौडायें। फिर तो फिल्मी दोस्त उस पर आराम से गोलियाँ - दाग सकता था |
शक्तिमान ने देखा कि तालाब के पास कूदकर वह गलती कर चुका है | वापस दीवार पर कूद कर नही चढा जा सकता और दीवार के अंदर कोई पेड भी नही जिसके सहारे दीवार पर पहुँचा जा सके | बुद्घिमान शहरवासी मनुष्य ने जंगल के बाघ को घेर लिया था | गेट खोलकर विद्यार्थियों का रेला लाठियाँ भाँजता हुआ अंदर आया और उसे खदेडने लगा | शक्तिमान भागता रहा, गुर्राता रहा, और डरता रहा - आखिर फिल्मी दोस्त की गोलियों ने उसे छलनी कर दिया | एक भारी चीख - एक आखिरी छलाँग और शक्तिमान अपने डर को साथ लिये सदा के लिये सो गया |
पूरे नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह दो विद्यार्थी थे जो आगे आये | व्ही.सी. ने आश्चर्य से देखा - एक तो उन्हीं की बेटी थी - नौंवी कक्षा की छात्रा | उसके हाथ में पुस्तक थी |

पापा - आपने बाघ को क्यों मरवाया ? बताइये ना ? हमारी पुस्तक में लिखा है कि पर्यावरण को बचाना हमारी जिम्मेदारी है, न कि वन्य प्राणियों को मारना | आज यह अकेला बाघ मारा गया | कल इसकी पूरी प्रजाति और फिर कई अन्य प्रजातियाँ नष्ट होती रहेंगी तो आदमी भी नही बचेगा | पापा बताइये ना - उस डरपोक, थके हारे बाघ को बेहोशी का इंजेक्शन देकर हम जंगल में भी तो वापस भेज सकते थे | वह हमसे डरा हुआ था | क्या हम भी डरपोक थे ? नही ना। हम तो इतने सारे थे| फिर उसे मार कर हमें क्या मिला ?
व्ही.सी. के पास इसका कोई उत्तर नही था|
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