खलिफा का न्याय
--लीना मेहेंदले
बच्चों, एक जमाना था जब अरब देश बहुत ही धनी था (वैसे तो आज भी है !), वहाँ एक से एक नामी राजा हुए, पंडित हुए, कथाकार हुए। अरेबियन नाइट्स जैसी प्रसिद्ध कहानियाँ लिखी गईं। संसार के दूसरे लोग भी 'द शेव्हिंग आफ शॅगपट'आज भी बडे चाव से पढा जाता है। इसका मराठी अनुवाद किया है मराठी के एक प्रसिद्ध साहित्यिक श्री. जी. ए. कुलकर्णी ने। आज उसी उपन्यास का एक छोटा कथा अंश तुम्हें बता रही हूँ।
पर्शिया का नामी खलीफा था शाहपेश। उसे अपने लिये नया राजमहल बनवाना था। राज दरबार का इमारतखाना अर्थात् इंजिनियरिंग विभाग था। उसका प्रमुख मिस्त्रि खिपिल पिछले चार वर्षो से इस काम में लगा हुआ था। शाही खजानेसे उसे मुँहमाँगा खर्च भी दिया जा रहा था। सो एक दिन शाहपेश ने तय किया कि चल कर देखा जाय कि काम पर क्या प्रगति हुई है।
नदी किनारे महल बनना था। वहाँ संगमरमर की लँबी चौडी तख्तियों और नक्काशी वाले खंभों के बीच खिपिल आराम से लेटा हुआ था। बाकी सारे कामवाले मजदूर, मुकादम, बढई और मिस्त्रि भी उसके आस पास पसर कर लेटे हुए थे। खिपिल उन्हें अपने बडप्पन की कई कहानियाँ विस्तार से सुनाकर और बीच बीच में गीत गाकर उनका मनोरंजन कर रहा था। जैसे नदी किनारे हरी भरी घास खाकर भेंडें हृष्ट पुष्ट और सुस्त हो जाती हैं, वैसे ही वे सारे लोग दिख रहे थे।
शाहपेश ने खिपिल को बुलवाया और कहा - खिपिल, चार वर्ष बीत गये। मेरा आधा खजाना खाली हो गया। अब जरा दिखाना कि महल का काम कहाँ तक पूरा हुआ ?
खिपिल ने बडी नम्रता से झुक झुक कर उसे तीन बार कुर्निसात बजाया और कहा - 'अमानतपन्हा, अर्ज किया है कि इमारत तो आपके सामने खडी है । दूर दराज से राजे, महाराजे, सुलतान और वजीर आपके पास आदाब बजाने आयेंगे । ऐसे राजमहल के लिये जगह भी वैसी ही शानदार चाहिये । मैंने वह जगह चुनी है कि देखने वाला मेहमान हैरान जायें और कवियों को वर्णन के लिये शब्द भी पूरे ना पडें।
शाहपेश ने हंसकर कहा - जगह तुमने सर्वोत्तम चुनी है, इसमें कोई शक नही। लेकिन कवि इब्न बसराक ने कविता भी उत्तम कही है, सुनो -
'ऐसा भी होता ही है, कि जहाँ न थी कभी कोई अच्छाई
वहाँ आदमी अच्छाई के नामपर बडे बडे मंदिर बनाते हैं !
और जहाँ न था कभी कोई सद्गुण,
उसी की प्रशंसा में ढोल पीटे जाते हैं।
सो तुमने जो जगह चुनी है, उसका बखान खूब सुन लिया। अब जरा आगे आगे चलकर मुझे महल का अंतरंग दिखाओ - तमाम दिवानखाने, आइना-महल, गलियारे, संगमरमर के
नक्काशीदार पायदान और हस्तीदंत की खिडकियाँ, अत्तरखाना और जवाहरखाना, दीवाने-खास, पानी के झिलमिल फव्वारे और मोर, हाथी, गरूड के शिल्पों से सजे गुलाबदान - गरज कि जिन
जिन बातों के लिये शाही खजाना खर्च हुआ है, मुझे वह सब दिखाओ। मैं तुम्हारी रचनात्मक कुशलता से अभिभूत होना चाहता हूँ।
खिपिल ने कहा - 'जो हुकुम !'फिर बडी अदा और अदब से खिपिल ने शाहपेशको अधकचरी इमारतों के बीच सैर करवाई। आधे अधूरे गलियारे, बगैर छत के दिवानखाने व अन्य कमरे, पानी के अभाव में सूखे पडे फव्वारे, और अधरंगी, अनगढी शिल्प-कृतियाँ। लेकिन शाहपेश के शब्द सुनकर वह हैरान रह गया। शाहपेश ने उसकी बडी भारी प्रशंसा की। अलम दुनियाँमें ऐसी तत्परता कहीं नही दिखती - कहकर उसे शाबासी दी।
जरा आगे शाहपेश एक जीना चढकर छत पर आ गया और कहा - तुम्हारे काम से मैं निहायत खुश हूँ। तुम अब मेरे आगे आगे चलकर छतसे दीखनेवाला पूरा नजारा दिखाओ।
सुनकर खिपिल की छाती यों फूल गई जैसे लोहार की धौंकनी हवा भरने से फूलती हो। लेकिन कुछ ही कदम चलकर वह अटक गया और कहने लगा - हुजूर, इसके आगे नही जा सकता क्यों कि आगे खुली जगह है।
शाहपेश ने कहा - 'अरे, चलो, समय न गँवाओ, आगे चलो।'
खिपिल ने कहा - 'गरीब परवर, यहाँ दो कमरों की छतों को जोडनेवाली तख्तपोशी का काम बाकी है और यह बीच वाली जगह काफी चौडी है - इसे फाँदकर नहीं जा सकता।'
शाहपेश ने कहा - बको मत, मुझे तो कोई खाली जगह नही दिखती। सब कुछ कितना प्रमाण-बद्ध और बारीकीसे बनाया हुआ है। चार साल जो काम चल रहा हो वह अधूरा कैसे रह सकता है? चलो आगे चलो। घोडे को एड और हाथी को अंकुश लगाते हैं। लेकिन समरकंद से लेकर हिंद तक विख्यात तुम्हारे जैसे कारीगर के लिये क्या लगाते हैं, मुझे नहीं मालूम। फिर भी प्रयोग करने की खातिर मैं तलवार आजमाकर देख सकता हूँ। '
खिपिल के पाँव काँपने लगे। जहाँ से नीचे कूदना था, वहाँ गहराई तक पानी था और उसे तैरना नहीं आता था। लेकिन जब शाहपेशके हुकुम पर सैनिकों ने तलवारें निकालीं तो खिपिल को कूदना पडा। फिर शाहपेश के हुकुम से नौकरों ने उसे बाहर निकाला तो ठंड और भय से उसके दाँत बज रहे थे और शरीर थरथरा रहा था।
शाहपेश ने फिर एक बार उसकी बारीक-खयाली की भूरी भूरी प्रशंसा की और कहा - 'वाह, तुमने स्नान के लिये क्या बढिया जगह चुनी । मैं खुश हुआ। तुम्हें इनाम मिलना चाहिये। अब मुझे शाही तख्त दिखाओ।
वहाँ पहुँच कर शाहपेश ने और अधिक खुशी जताई। 'खिपिल, दुनियाँ में किसी को नही मिला हो ऐसा इनाम तुम्हें मिलेगा। तुम हमसे पहले इस तख्तपर बैठोगे। आओ, आगे बढो।
खिपिल ने कहा - 'खाविंद, अभी तक तख्त बन नही पाया है। शाहपेश ने कहा - यह कैसे संभव है? यदि चार वर्ष काम करने के बाद भी तख्त पूरा नही हुआ हो, तो समझो कि हवा में जितनी तुम्हारी उँचाई है, वही जमीन पर तुम्हारी लंबाई बन जायगी।'
सुनकर खिपिल का मत तत्काल बदल गया। उसने कहा - हुजूर, मैं गलत देख रहा था। तख्त तो वाकई बन चुका है।
फिर खिपिल उस खाली चबूतरे पर चढा जहाँ सिंहासन होना चाहिये था और घुटने मोडकर यों बैठा जैसे काल्पनिक कुर्सी पर कोई बैठे। शाहपेश ने फिर एक बार तख्त की सुंदरता की तारीफ की और फर्माया कि दोपहर तक खिपिल उस तख्त पर बैठे। लेकिन यदि सिंहासन की बेअदबी करते हुए वह जरा भी दांये - बाँये हिला तो उसे तत्काल बाणके नोंक चुभाये जायें।
शाहपेश के जाते ही बाकी सारे बढई मिस्त्रि, मजदूर आदि वहाँ जमा हो गये और बाणों की नोकों से घिरे खिपिल को देख देख कर जमीन पर लोट पोट होते हुए हँसते रहे। उनके हँसने से खिपिल तो नही हिल सकता था। लेकिन सैनिकों के बाण भी हँसते रहे और उसे चुभते रहे।
दोपहर ढल चुकी तो शाहपेश वापस आया और खिलिप से आग्रह किया कि अब वह उसे राजवाडे के बाग-बगीचे, फव्वारे की सेर कराए।
शाहपेश ने सारे फूलों की प्रशंसा करते हुए खिपिल से कुछ सुगंधी फूलों का गुच्छा बनाने का आग्रह किया और कहा कि उन फूलोंका सुगंध लेकर मुझे उसका वर्णन कर बताओ।
इस पर खिपिल ने जो कंटीली झाडियाँ तोडकर अपने नाक के पास लाईं तो उसके नाक में अपार खुजली होने लगी। शाहपेशने उससे देर तक फूल सूंघते रहने का आग्रह किया और कुछ कविताएँ भी सुनाईं और खिपिल से उनके विषय में पूछा।
निरुत्साह खिपिल ने कहा - हुजूर,
शाहपेश ने हँसकर कहा - क्या फूल भी कभी चुभते हैं? चलो, हम हुक्म देते हैं कि..... ! और एक बात याद रखना।........
थोडी देर बाद खिपिल घर जाकर लौटा तो शाहपेश ने पूछा - 'क्यों खिपिल, कैसा हुआ तुम्हारा स्वागत?'
खिपिल ने कहा - 'बडी आवाज, और धूमधडाके से हुआ हुजूर।'उन्होंने घरके सारे बरतन मुझसे भिडाते हुए सडक पर सजा दिये।'
'और तुम्हारी नाक का क्या हुआ ?'
'बंदा क्या बताये परवरदिगार? नाक में बारबार खुजली हो रही थी। मेरी ही चीज, मैं ही खुजलाना चाहता था। लेकिन साथवाले तलवारबाज सिपाही ऐसा नही चाहते थे । इसलिये मैं हर राहगीर से बिनती करने लगा। मैं नहीं जानता था कि हमारे देश में थोडी सी मदद माँगने पर ..........
शाहपेश ने कहा - 'देखो, हमारे जैसे दिलदार लोग जब प्रशंसा करते हैं तो भरपूर बरसते बादलों की तरह बख्शिशोंकी झडी लगा देते हैं। अब हम तुम्हें हुक्म देते हैं कि अनारबाग चलो और चूँकि वहाँ कोई अनार का पेड दिखना चाहिये, लिहाजा तुम ही वहाँ सात दिन और सात रात लगातार पेड बनकर खडे रहोगे। दोनों हाथ फैलाकर उनमें दो और तीन अनार थामे रहोगे।
फिर शाहपेश ने अपनी तमाम प्रजा को न्यौता दिया कि राजमहल के इस अनोखे अनार के पेड को देखने के लिये सब पधारें, और उस पेडको प्यार से सहलायें, या पत्त्तियाँ नोचें पर अनार न तोडें।
अनार बाग देखकर शाहपेश की प्रजा ने दाद दी। कहा - 'हमारा राजा जानता है कि कामचोरों को सटीक और उचित सजा कैसे दी जाती है। उनके दिलमें शाहपेशके लिये और अधिक आदर पैदा हो गया।
खिपिल ही की तरह जो दूसरे मिस्त्रि थे, जो केवल हवामें बातों के महल बाँधते थे, सबने तत्काल अपनी कार्यप्रणाली बदली। खिपिल को मिले...........
देश की प्रगति रुकी पडी थी, वह फिर से दिन दूने वेग से बढने लगी।
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लीना मेहेंदले, - १८, बापू धाम, सेंट मार्टिन मार्ग, चाणक्यपुरी, दिल्ली, ११००२१
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